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पहचान कौन?

मै कौन हूँ?
मै मन, बुद्धि, अहँकार और चित्त नहीं हूँ। ही पञ्च ज्ञानेन्द्रिय हूँ और ही पञ्च महाभूत॥
तो प्राण-शक्ति हूँ ही  पञ्च वायु तो सात धातु और नही पञ्च कोश हूँ। पञ्च कर्मेन्द्रिय भी नहीं हूँ
मुझ मे राग, द्वेष, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य नहीं हैं।   ही चतुर्विध पुरुषार्थ र्है॥
मै पुण्य एवं पाप तथा सुख एवं दुःख से रहित हूँ, ही मैं मन्त्र,तीर्थ, वेद एवं यज्ञ हूँ और ही भोजन,भोज्य या भोक्ता हूं॥
मुझे मृत्यु का भय है जाति भेद, मेरा तो कोई पिता है और ही काई माता क्योंकि मै जन्म-रहित हूँ। 
        
मेरा कोई बन्धू है और ही कोई मित्र, कोई मेरा गुरू है और मैं किसी का शिष्य हूँ॥
मैं निर्विकल्प, निराकार,विचारविमुक्त सब इन्द्रियों से पृथक हूँ।  मैं कल्पनीय हूं, आसक्ति हूँ और ही मुक्ति हूँ॥
अरे! तो पहचान कौन?
 चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहं
(श्री
आदिशंकराचार्य विरचित  निर्वाण षट्कम )   

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कलि को तरने का उपाय

कलि को तरने का उपाय युग चार हैं- सत  युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग। ऐसा कहा जाता है कि सत युग मे धर्म चारों पादों पर चलती है। त्रेता युग मे तीन पाद पर चलती है, एक पाद अधर्म का हो जाता है। द्वापर युग मे दो पाद धर्म के और दो अधर्म के हो जातेहैं। कलि युग के आने पर धर्म एक पाद पर चलती है एवं अधर्म तीन पादों पर चलती है। कलि युग मे अधर्म ही हमे दिखाई देता है, इसको तरना तो मुष्किल है। कलिसन्तरणोपनिषत से पता चलता है कि द्वापर युग के अन्त मे महर्षि नारद ब्रह्मा्जी से कलि को तरने का उपाय पूछते हैं। ब्रह्मा जी बताते हैं कि आदिपुरुष नारायण के षोडशनाम कलिकल्मशनाश हैं यानि कि कलिे के पापों को नाश करने वााला है। यह षोडशनाम यानि सोलह नाम हैं-- हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ इसके विधि-विधान के बारे मे नारद जी के पूछने पर व्रह्मा जी कहते हैं कि इसका कोई विधि-विधान नही है सर्वदा शुचि व अशुचि अवस्था मे पढ सकते हैं।

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