कलि को तरने का उपाय
युग चार हैं-सत
युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग। ऐसा कहा जाता है कि सत युग मे धर्म चारों पादों पर चलती है। त्रेता युग मे तीन पाद पर चलती है, एक पाद अधर्म का हो जाता है। द्वापर युग मे दो पाद धर्म के और दो अधर्म के हो जातेहैं। कलि युग के आने पर धर्म एक पाद पर चलती है एवं अधर्म तीन पादों पर चलती है। कलि युग मे अधर्म ही हमे दिखाई देता है, इसको तरना तो मुष्किल है।
कलिसन्तरणोपनिषत से पता चलता है कि द्वापर युग के अन्त मे महर्षि नारद ब्रह्मा्जी से कलि को तरने का उपाय पूछते हैं।
ब्रह्मा जी बताते हैं कि आदिपुरुष नारायण के षोडशनाम कलिकल्मशनाश हैं यानि कि कलिे के पापों को नाश करने वााला है।
यह षोडशनाम यानि सोलह नाम हैं--
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥
इसके विधि-विधान के बारे मे नारद जी के पूछने पर व्रह्मा जी कहते हैं कि इसका कोई विधि-विधान नही है सर्वदा शुचि व अशुचि अवस्था मे पढ सकते हैं।
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