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क्या यह दुनिया वास्तविक है?
मनुष्य के
जीवन मे अशान्ति
है। वह ज्यादा
पैसे चाहता है,
सुख़-समृद्धि चाहता
है, लेक़िन पा
नहीं सक़ता। स्वस्थ
रहना चाहता है।
क़्या रह पाता
है?
इन सब
प्रश्नों क़े समाधान
क़े रूप मे
श्री शंकराचार्य कहते
है
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या
जीवो ब्रह्मैव नाऽपरः
इसका मतलब है
-ब्रह्म सत्य है
जगत ( दुनिया) मिथ्या है
जीव ब्रह्म ही है
अन्य नही
श्री शंकराचार्य केवल परब्रह्म
को सच मानते
हैं। उनके मत
मे यह दुनिया
मिथ्या है।
इस मिथ्या
वाद पर कुछ
लोग़ों ने आपत्ति
उठाई है। उनका
कहना है कि
जिस दुनिया मे
वह जी रहें
हैं.अनुभव कर
रहें हैं ऐसी दुनिया
मिथ्या कैसी हो
सकती है? उनमे
से काश्मीरी शैव
प्रमुख हैं।
काश्मीरी शैविस्म के अनुसार,
शिव, एक , अविभाज्य,
अनन्त, परमात्मा, उच्चतम वास्तविकता,
अनंत चेतना और
निरंकुश है।
सभी चेतन और
अचेतन प्राणियों मे
आत्मा हैं जो
दोनों स्थिर और
उत्कृष्ट हैं
।वह निर्विकार,निर्गुण परव्रह्म हैं जिनसे व्रह्माण्ड
की सृष्टि होती
हैऔर लय के
समय उनमे समा
ज़ाती है। वही
सुप्रीम भगवान हैं जिसके
आगे और कुछ
नहीं है। कश्मीरी शैविस्म आत्मज्ञान के लिए
एक व्यक्तिगत देवता
के रूप में
शिव की भक्ति
पूजा की
जरूरत पर जोर
नहीं डालती है। भक्ति
पूजा व्यक्तित्व के
कुछ प्रकार के
लिए उपयुक्त हो
सकता है, लेकिन
तुलनात्मक रूप से
समर्पण और विश्वास
के भक्ति दृष्टिकोण
सबसे होनहार और
उन्नत चाहने वालों
के लिए निर्धारित
करने के लिए
अवर है।
कश्मीरी शैविस्म शंकर के
अद्वैत से अलग
है कि यह
असत्य के रूप
में प्रकट दुनिया
को नहीं मानता।
दुनिया जिसमें हम रहते
हैं और अनुभव करते हैं
वह मिथ्या कैसी हो
सकतीहै अगर भगवान
असली है, तो
उनसे उत्पन्न सब
कुछ वास्तविक होना
चाहिए कश्मीरी शैविस्म के अनुसार, शिव
और उसकी रचना दोनों वास्तविक और अविभाज्य हैं।
इनका समाधान श्री शंकराचार्य
इस प्रकार देते
हैं-
सत्य तीन प्रकार
का होता है
१.त्रिकालावाध्य सत्य- जो नित्य
सत्य हो
२.प्रातिभासिक सत्य- जो
केवल दैखते समय
ही सत्य हो
३.व्यावहारिक सत्य- ब्रह्म-ज्ञान होने
तक ही जो
सत्य हो
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