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पहचान कौन?

मै कौन हूँ? मै मन , बुद्धि , अहँकार और चित्त नहीं हूँ। न ही पञ्च ज्ञानेन्द्रिय हूँ और न ही पञ्च महाभूत॥ न तो प्राण - शक्ति हूँ न ही   पञ्च वायु न तो सात धातु और नही पञ्च कोश हूँ। पञ्च कर्मेन्द्रिय भी नहीं हूँ ॥ मुझ मे राग , द्वेष , लोभ , मोह , मद एवं मात्सर्य नहीं हैं।    न ही चतुर्विध पुरुषार्थ र्है॥ मै पुण्य एवं पाप तथा सुख एवं दुःख से रहित हूँ , न ही मैं मन्त्र , तीर्थ , वेद एवं यज्ञ हूँ और न ही भोजन , भोज्य या भोक्ता हूं॥ न मुझे मृत्यु का भय है न जाति भेद , मेरा न तो कोई पिता है और न ही काई माता क्योंकि मै जन्म - रहित हूँ।            मेरा न कोई बन्धू है और न ही कोई मित्र , न कोई मेरा गुरू है और न मैं किसी का शिष्य हूँ॥ मैं निर्विकल्प , निराकार , विचारविमुक्त सब इन्द्रियों से पृथक हूँ।   न मैं कल्पनीय हूं , न आसक्ति हूँ और न ही मुक्ति हूँ॥ अरे ! तो पहचान कौन ?  चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहं (श्री आदिशंकराचार्य विरचित  निर्वाण षट्क

क्या यह दुनिया वास्तविक है?Keywords- , काश्मीरी शैविस्म, दुनिया, वास्तविक, शंकराचार्य, ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, मिथ्या वाद,

क्या यह दुनिया वास्तविक   है ? मनुष्य के   जीवन मे अशान्ति है। वह ज्यादा पैसे चाहता है , सुख़ - समृद्धि चाहता है , लेक़िन पा नहीं सक़ता। स्वस्थ रहना चाहता है। क़्या रह पाता है ?                      इन सब प्रश्नों क़े समाधान क़े रूप मे श्री शंकराचार्य कहते है   ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नाऽपरः इसका मतलब है - ब्रह्म सत्य है                           जगत ( दुनिया ) मिथ्या है                          जीव ब्रह्म ही है अन्य नही श्री शंकराचार्य केवल परब्रह्म को सच मानते हैं। उनके मत मे यह दुनिया मिथ्या है।           इस मिथ्या वाद पर कुछ लोग़ों ने आपत्ति उठाई है। उनका कहना है कि जिस दुनिया मे वह जी रहें हैं . अनुभव कर रहें हैं   ऐसी दुनिया मिथ्या कैसी हो सकती है ? उनमे से काश्मीरी शैव प्रमुख हैं।   काश्मीरी शै विस्म के अनुसार , शिव , एक , अविभाज्य , अनन्त , परमात्मा , उच्चतम वास्तविकता , अनंत चेतना और निरंकुश है।   सभी चेतन और अचेतन प्राणियों मे आत्मा